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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2715
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल

अध्याय - 11
प्रजाति

(Race)

विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में पाये जाने वाले वृहद् मानव समूहों के जैवीय एवं शारीरिक गुणों में अनेक विभिन्नतायें पायी जाती हैं। सामान्यतः एक देश के व्यक्ति दूसरे देश के व्यक्ति से त्वचा के रंग, मुँह की बनावट तथा सिर के आकार की दृष्टि से पर्याप्त भिन्नता रखते हैं। वस्तुतः मानव के ये जैविक एवं शारीरिक संरचना के गुण एक मानव समूह से पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशानुगत होते रहते हैं और लम्बे समय तक इन जैव शारीरिक गुणों पर बाह्य वातावरण का कम या अधिक मात्रा में प्रभाव पड़ता है। अतः प्रजाति समान वर्ग तथा शारीरिक लक्षणों से युक्त एक मानव समूह होता है। मैरिल के अनुसार प्रजाति एक जैविक शब्द है जो व्यक्तियों के वृहद् समूह की कुछ ऐसी भौतिक समानताओं को प्रकट करता है जो वंशानुक्रम प्रक्रिया के द्वारा हस्तान्तरित होते हैं। परन्तु मानवशास्त्र के दृष्टिकोण से यदि देखा जायें तो 'प्रजाति' शब्द मानव के केवल ऐसे समूह के लिए प्रयुक्त होता है जिनमें अन्य समूहों से भिन्न, वंशानुक्रम द्वारा भिन्न लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। ग्रिफ्थ टेलर तो यहाँ तक मानते हैं कि मानव प्रजाति केवल नस्ल को प्रकट करती है किसी मानव सभ्यता को नहीं। ए0 लिप शुट्ज की मान्यता है कि मानव शास्त्र के दृष्टिकोण से प्रजाति मानव के केवल ऐसे समूह के लिए आरक्षित हैं जिनमें अन्य समूहों से भिन्न वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त लक्षण मिलते हैं। स्पष्टतः प्रगति एक जैव- शारीरिक विचारधारा है जिसका मानवीय संस्कृति से कोई संबंध नहीं है। विश्व के प्रत्येक पुजारी की अपनी निर्धारित विशेषतायें होती है जो किसी अन्य प्रजाति में नहीं पायी जाती। इन्हीं शारीरिक विभिन्नताओं के आधार पर एक प्रजाति को दूसरी प्रजाति से अलग किया जाता है तथा एक प्रजाति में मानव की शारीरिक विशेषतायें उसकी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पैतृक गुणों या वंशानुक्रम के द्वारा हस्तान्तरित होती रही हैं। मानव के अभ्युदय के प्रारम्भिक काल में केवल एक ही मानव प्रजाति थी परन्तु वाद में संस्कृति तथा सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव का भूपटल के विभिन्न भागों पर स्थानान्तरण हुआ तथा दीर्घकाल तक नये-नये क्षेत्रों के भिन्न-भिन्न वातावरणों में निवास करने के कारण मानव की शारीरिक संरचना में अन्तर आया जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले मानवीय समूह प्रजाति के रूप में एक दूसरे से अलग होते गये। मानव शरीर में इस विभिन्नता के आने के कार्य महत्त्वपूर्ण काम हैं जिनमें जैविक उत्परिवर्तन प्राकृतिक चयन, हार्मोनो का प्रभाव तथा प्रजातीय मिश्रण मुख्य है। मानव प्रजातियों का निर्धारण सामान्यतः बाह्य तथा आन्तरिक शारीरिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है। वाह्य लक्षणों में त्वचा का रंग, बालों की बनावट, शरीर का कद, मुख की आकृति तथा नेत्रों के आकार एवं रंग मुख्य होते हैं टेलर ने प्रजातियों को आठ भागों में वर्गीकृत किया है। जिसमें नीग्रोटो प्रजाति के लोगों का सिर बहुत पतला तथा भौगोलिक प्रजाति के लोगों का सिर बहुत चौड़ा होता है। लम्बा तथा उभरा सिर रखने वाले आस्ट्रेलायड प्रजाति के लोग आस्ट्रेलिया दक्षिण भारत, ब्राजील तथा पूर्वी व मध्य अफ्रीका में पाये जाते हैं जबकि नीग्रो लोगों का मुख्य निवास स्थान सूडान, गिनी तथा पापुआ न्यूगिनी का क्षेत्र है। भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोग भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्रों में पाये जाते हैं। नार्डिक लोगों का निवास स्थान यूरोप तथा दक्षिणी पूर्वी यूरोप का भूमध्य सागरीय क्षेत्र है। विश्व की प्रमुख प्रजातियों में काकेशियन, नीग्रो, मंगोल आदि मुख्य हैं जिन्हें अनेक उपप्रजातियों में थी विभाजित किया गया है।

'प्रजाति' शब्द के अर्थ के बारे में मानव शास्त्रियों के विचार भिन्न-भिन्न हैं।

प्रजाति एक जैविकीय विचारधारा है।

कुछ विद्वान समानगुण या गुण समूहों वाले लोगों को प्रजाति कहते हैं।

कुछ विद्वान भाषा तथा कई पीढ़ियों से एक ही स्थान पर रहने वाले मानव समूह को प्रजाति मानते हैं।

कुछ विद्वान प्रजाति को धर्म के आधार पर परिभाषित करते हैं।

वस्तुतः प्रजाति मानव जाति का एक प्रमुख भाग है जो इस नस्ल की शारिरिक विशेषताओं से चिन्हित होता है।

क्रोवर के अनुसार प्रजाति एक प्रमाणित जैविक संकल्पना है।

प्रजाति की सामाजिक-सांस्कृतिक अवधारणा नहीं है।

प्रजाति वंश या प्रजातीय गुण अथवा उपसमूह के द्वारा जुड़ा होता है।

डी ला-ब्लाश के अनुसार मानव प्रजाति का वर्गीकरण मानव शरीर की आकृति तथा शारीरिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है।

हाब्ल के अनुसार प्रजाति विशिष्ट जननिक रंचना के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले शारीरिक लक्षणों का एक विशिष्ट संयोग करने वाले अन्तर्सम्बन्धित मनुष्यों का एक बड़ा समूह है।

हैडेन की मान्यता है कि प्रजाति किसी वर्ग विशेष को प्रदर्शित करती है जिसकी सामान्य विशेषतायें आपस में समरूपता प्रदर्शित करती है।

हैडेन के अनुसार, प्रजाति एक जैविक नस्ल है जिसके प्राकृतिक लक्षणों का योग दूसरी प्रजाति के प्राकृतिक लक्षणों के योग से भिन्न होता है।

प्रजातियों के वर्गीकरण का आधार बाह्य तथा आन्तरिक लक्षण होते हैं।

ग्रिफ्थ टेलर के अनुसार — “मानव प्रजाति नस्ल को प्रकट करती है न कि मानव सभ्यता को 'लिपशुल्ज की मान्यता है कि मानवशास्त्र के दृष्टिकोण से 'प्रजाति' मानव के केवल ऐसे समूह के लिए सुरक्षित हैं जिनमें अन्य समूहों से भिन्न, वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त शारीरिक लक्षण मिलते हैं।

वस्तुतः प्रजाति एक जैव- शारीरिक विचारधारा है।

शारीरिक विशेषताओं के आधार पर ही एक प्रजाति को दूसरी से अलग किया जाता है।

मानव के अभ्युदय के प्रारम्भिक काल में मानव की केवल एक ही प्रजाति थी।

सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ मानव का भूपटल के विभिन्न भागों में स्थानान्तरण तथा वहाँ के वातावरण के प्रभाव के कारण मानव की शारीरिक संरचना में अन्तर आते गये।

मानव की आनुवंशिक भिन्नता जैविक उत्परिवर्तन, प्राकृतिक चयन, हार्मोनों के प्रभाव तथा प्रजातीय सम्मिश्रण के कारण आता है।

मानव के वंश तत्व उसकी विशिष्ट पहचान को कायम रखते हैं।

वंश तत्वों की संरचना अपरिवर्तनीय होती है।

मानव समूहों की शारीरिक विशेषतायें मानवीय शरीर के विशिष्ट वंश तत्वों के प्राकृतिक वातावरण से समायोजन का परिणाम होती है।

मानवीय शरीर जिन वंश तत्वों का अपने प्राकृतिक वातावरण से समायोजित नहीं कर पाता, वे धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं।

प्रजाति के विकास में प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्राकृतिक चयन द्वारा प्रकृति स्वयं ऐसे जीवधारियों को नष्ट कर देती है जो या तो कमजोर होता है या प्रकृति के साथ अपने को समायोजित नहीं कर पाते।

गर्म प्रदेशों में श्याम या काले रंग की त्वचा वाले वंश तत्व अधिक सक्रिय रहते हैं। शीत प्रदेशों में गोरे रंग की त्वचा वाले वंश तत्व अधिक सक्रिय रहते हैं।

मानव शरीर में पीयूष, थायरायड तथा एड्रीनल नामक तीन मुख्य हार्मोन ग्रंथियां होती हैं। ये तीनों ग्रंथियां शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए विभिन्न हार्मोनो का स्रावण करती हैं।

विभिन्न कारणों से दो भिन्न प्रजातियों का वैवाहिक संबंध स्थापित होने के कारण प्रजातियों का सम्मिश्रण हो जाता है।

विश्व के अधिकांश भागों में प्रजातीय मिश्रण के परिणामस्वरूप नवीन प्रजातियों का विकास हुआ है।

प्रो0 ब्लांश ने प्रजाति की पहचान कायम रखने के लिए उसकी एकान्तता को आवश्यकता माना है।

प्रजातीय मिश्रण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वाह्य शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन होते जाते हैं।

वाह्य शारीरिक लक्षणों में त्वचा का रंग, बालों की बनावट, मुख की आकृति, शरीर की लम्बाई तथा नेत्र कोटर एवं नेत्रों के रंग आते हैं।

आन्तरिक शारीरिक लक्षणों में कपाल सूची, नासिक सूची, रक्त समूह तथा शरीर की हड्डियों का ढांचा आदि आते हैं।

त्वचा के रंग के आधार पर विश्व की प्रजातियां काली, श्वेत तथा पीली रंग की होती है।

त्वचा में मैलेनिन नामक पदार्थ की अधिकता से त्वचा का रंग काला हो जाता है।

कैरोटिन तथा हीमोग्लोबिन की अधिकता के कारण त्वचा का रंग क्रमशः पीला और गोरा हो जाता है।

टापी नार्ड नामक वैज्ञानिक ने प्राणियों के वर्गीकरण में मानवीय शरीर के बाद का प्रयोग किया है।

टैपी नाई ने 170 सेमी से अधिक लम्बाई वाले लोगों अधिक कद वाला या लम्बा माना है जबकि 150 सेमी0 से कम लम्बाई वालों को बौना माना है।

मुलायम या सीधे बाल वाले लोगों को 'लियो ट्रीची' वर्ग में रखा जाता है।

चिकने तथा घुँघराले बालों वाले लोगों को कीमो ट्रीची वर्ग में रखा जाता है।

मोटे, घुँघराले तथा उलझे बालों वाले लोगों को 'वूल टीची' वर्ग में रखा जाता है।

ग्रिफ्थ टेलर ने बालों की बनावट, खोपड़ी सूचकांक तथा अन्य शारीरिक विशेषताओं के आधार पर मानव प्रजातियों के 7 भागों में विभाजित किया है।

नीग्रो का सिर बहुत पतला जबकि मंगोलिक का सिर बहुत चौड़ा होता है।

आस्ट्रेलायड का सिर लम्बा नार्डिक का सिर मध्यम आकार का होता है।

नीग्रोटो प्रजाति वर्तमान में केवल कुछ एकान्त तथा दूरस्थ क्षेत्रों तक सीमित होकर रह गयी हो।

नीग्रीटो प्रजाति वर्तमान में केवल कुछ एकान्त तथा दूरस्थ क्षेत्रों तक सीमित होकर रह गयी है।

नीग्रीटो प्रजाति श्रीलंका, अण्डमान द्वीप समूह, फिलीपींस तथा न्यूगिनी के वनों में पायी जाती है।

यह प्रजाति अफ्रीका के कांगोबेसिन, कैमरून, युगाण्डा में पायी जाती है।

नीग्रो प्रजाति सूडान तथा गिनी तट एवं थोड़ी संख्या में पापुआ न्यूगिनी क्षेत्र में भी पायी जाती है।

नीग्रो लोगों के त्वचा का रंग काला तथा काजल के समान होता है।

आस्ट्रेलायड प्रजाति आस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत, ब्राजील तथा मध्य अफ्रीका में पायी जाती है।

ब्राजील की डौस, बूटों कूटो तथा मध्य अफ्रीका की बंटू जनजाति आस्ट्रेलायड समूह से ही है।

भूमध्य सागरीय जनजाति भूमध्य सागर के समीपवर्ती देशों यथा सउदी अरब, इराक, ईरान तथा मिस्र और सभी महाद्वीपों के बाहरी भागों में पायी जाती है।

नार्डिक के प्रजाति का मुख्य निवास स्थान उत्तरी यूरोप तथा दक्षिणी पूर्व यूरोप का भूमध्य सागरीय क्षेत्र है।

स्विस, स्लाव, आर्मेनियम तथा अफगान लोग एल्पाइन प्रजाति से संबंधित हैं।

मंगोलिक प्रजाति का मूल स्थान मध्य एशिया था।

काकेशियन प्रजाति के लोग प्रमुख रूप से श्वेत या गौर वर्ण के होते हैं।

वर्तमान विश्व में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर काकेशियन प्रजाति पायी जाती है।

एल्पाइन प्रजाति मुख्यतः यूरोप में पायी जाती है।

भूमध्य सागरीय प्रजाति का विस्तार स्पेन, पुर्तगाल दक्षिणी इटली के अलावा उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिण-पश्चिम एशिया के कुछ भागों में पायी जाती है।

इंडो ईरानियम शाखा में 39 से 40 लाख लोग सम्मिलित हैं।

यह प्रजाति दक्षिण-पश्चिम एशिया तथा भारत को उत्तरी एवं मध्यवर्ती भाग में पायी जाती है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 पुराणों के विशेष सन्दर्भ में भौगोलिक समझ का विकास
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 मानव वातावरण सम्बन्ध
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 जनसंख्या
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 मानव अधिवास
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 ग्रामीण अधिवास
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 नगरीय अधिवास
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 गृहों के प्रकार
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 आदिम गतिविधियाँ
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 प्रजाति
  32. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  33. उत्तरमाला
  34. अध्याय - 12 धर्म एवं भाषा
  35. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  36. उत्तरमाला
  37. अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
  38. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  39. उत्तरमाला
  40. अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
  41. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  42. उत्तरमाला

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